MA Semester-1 Sociology paper-I - CLASSICAL SOCIOLOGICAL TRADITION - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2681
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

विसंगति की अवधारणा
(The Concept of Anomie)

आधुनिक समाजशास्त्रीय सिद्धान्त के क्षेत्र में 'विसंगति' (Anomie) की अवधारणा बहुत महत्त्व की है और उसे आधुनिक अर्थ में प्रयोग करने का श्रेय दुर्खीम को ही है। वैसे इस अवधारणा का उल्लेख जर्मन दर्शनशास्त्री हीगल की कृतियों में भी देखने को मिलता है, पर उन्होंने Anomie शब्द का नहीं, अपितु Alienation शब्द का प्रयोग लगभग उसी अर्थ में किया है जिस अर्थ में आज Anomie शब्द का प्रयोग विभिन्न विद्वान् करते हैं। दुर्खीम ने सर्वप्रथम 'विसंगति' की अवधारणा को अपनी महत्त्वपूर्ण कृति The Division of Labour in Society (1893) में विशेषकर उस स्थान पर विकसित किया है जहाँ कि उन्होंने श्रम विभाजन के सामान्य (normal) तथा व्याधिकीय (pathological) परिणामों का उल्लेख किया है। दुर्खीम ने सम्पूर्ण सामाजिक संरचना में उस विशेष दशा को व्याधिकीय माना है जबकि उस दशा का व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में प्रतिकूल या अस्वाभाविक (abnormal) प्रभाव पड़ता है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति संकुचित मनोभाव वाला अहमवादी और स्वार्थी हो जाता है और समाज के आदर्शों व मूल्यों को स्वीकार न करके अपने में सिकुड़ जाता है।

दुर्खीम के अनुसार, विसंगति का कारण स्वयं समाज ही है। सामाजिक प्राणी के रूप में व्यक्ति की अनेक आवश्यकताएँ हैं और इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति को अपना सम्बन्ध समाज के साथ जोड़ना पड़ता है और वह यह आशा भी करता है कि उन आवश्यकताओं की पूर्ति में समाज या समाज के अन्य सदस्यों का सहयोग उसे मिलता रहेगा। जब उसकी यह आशा पूरी नहीं होती है तो व्यक्ति में निराशा, असन्तोष, बदला लेने की भावना आदि पनप जाती है और वह समाज द्वारा मान्य स्थापित नियमों, आदर्शों तथा मूल्यों को स्वीकार करने से इन्कार कर देता है और इस प्रकार, का व्यवहार करता है कि उसका वह व्यवहार विसंगति या नियमविहीनता का ही परिचायक होता है 1 सामाजिक श्रम-विभाजन ने समाज के सदस्यों को एक-दूसरे से न केवल सम्बन्धित किया है अपितु प्रत्येक को उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के सन्दर्भ में दूसरों पर अत्यधिक निर्भर भी बना दिया है। इस अत्यधिक निर्भरशीलता का एक बुरा परिणाम यह होता है कि जब कभी भी ये दूसरे लोग व्यक्ति की आशाओं के अनुरूप उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति में सहयोग नहीं देते, तो व्यक्ति स्वयं अपने ढंग से अपने स्वार्थों की पूर्ति में लग जाता है और सामाजिक एकता एवं संगठन की चिन्ता करना छोड़ देता है। उस स्थिति में समाज में आदर्शविहीनता अथवा नियमविहीनता की एक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसी को दुर्खीम ने विसंगति की संज्ञा दी है। आपके ही शब्दों में, "विसंगति आदर्शविहीनता की एक अवस्था है, स्वाभाविकता का अभाव है, नियमों का निलम्बन है, एक ऐसी स्थिति है जिसे कि हम अक्सर नियमविहीनता कहते हैं।"

दुर्खीम के अनुसार, मनुष्य की असंख्य मानसिक, शारीरिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि आवश्यकताएँ होती हैं और प्रत्येक व्यक्ति इन आवश्यकताओं की अधिकतम पूर्ति चाहता है; पर समाज-व्यवस्था व संगठन को बनाए रखने के लिए उन्हें मनमाने ढंग से कार्य करने की अनुमति समाज नहीं देता, अपितु उन पर सामूहिक नियमों या आज्ञाओं के द्वारा नियन्त्रण की व्यवस्था करता है। पर कभी-कभी ऐसा भी होता है कि इन सामूहिक नियमों का नियन्त्रणात्मक प्रभाव घट जाता है और इस अवसर से फायदा उठाकर समाज में विवेक व आदर्श एक ओर रखा रह जाता है और व्यक्ति विवेकहीन एवं अस्वाभाविक व्यवहार करने लगता है। इस प्रकार का अस्वाभाविक व्यवहार समाज में एकाएक कोई क्रान्तिकारी परिवर्तन हो जाने के फलस्वरूप उत्पन्न परिस्थितियों के साथ समाज के लोग अपना अनुकूलन करने में असफल रहते हैं और उनके व्यवहार में आदर्श-शून्यता और अस्वाभाविकता "पनप जाती है। यही विसंगति की स्थिति कहलाती हैं।

इस विसंगति की स्थिति उत्पन्न होने के कारणों की चर्चा करते हुए दुर्खीम ने लिखा है कि सामूहिक शक्ति अथवा सामाजिक नियन्त्रण के भंग हो जाने के कारण, अचानक महत्त्वपूर्ण तकनीकी परिवर्तन होने से अथवा एकाएक कोई बड़ी उन्नति अथवा अवनति आदि होने से समाज में जो नवींन परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं क्योंकि इन एकाएक उत्पन्न परिस्थितियों का सफलातापूर्वक सामना करना प्रायः सम्भव नहीं होता है। उदाहरणार्थ, अचानक उत्पन्न आर्थिक संकट आ जाने पर अनेक उच्च आर्थिक स्थिति वालें लोगों की स्थिति एकाएक गिर सकती है। उस अवस्था में या तो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को कम करे अथवा आत्मनियन्त्रण के द्वारा अपने को उनसे दूर रखे। लेकिन अक्सर होता यह है कि वे ऐसा करने में असफल होते हैं और समस्त सामाजिक आदर्शों को भुलाकर आदर्शविहीन व अस्वाभाविक व्यवहार करके अर्थात् भ्रष्ट, अनैतिक या आदर्शविहीन उपायों द्वारा अपनी आर्थिक स्थिति को पुनः ऊँचा उठाने का प्रयत्न करके समाज में विसंगति की स्थिति को उत्पन्न करते हैं। यदि यह संकट शक्ति (power) अथवा सम्पत्ति (wealth) का हो तब भी विसंगति की स्थिति सामने आती है। अर्थात् कोई भी अचानक सामाजिक परिवर्तन विसंगति का एक उल्लेखनीय कारण बन सकता है। दुर्खीम के शब्दों में, “जब भी कोई अचानक परिवर्तन होता है तो समाज के नियन्त्रणात्मक नियमों की आदर्शात्मक संरचना ढीली पड़ जाती है और उस अवस्था में व्यक्ति को यह नहीं सूझता कि क्या गलत है अथवा क्या सही; उसकी इच्छाएँ अदम्य रूप में बढ़ जाती हैं और उनकी सन्तुष्टि के लिए वह विसंगति को अपनाता है।"

दुर्खीम का विचार है कि एक बार जब समाज में विसंगति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो फिर वह छूत की बीमारी की तरह फैलती जाती है और सम्पूर्ण समाज में मूल्यविहीनता व आदर्शविहीनता की स्थिति तब तक बनी रहती है जब तक सामाजिक शक्तियाँ अपने को पुनः प्रतिष्ठित करके समाज में संगठन व एकीकरण की स्थिति को उत्पन्न करने में सफल न हों। वास्तव में विसंगति की स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति अपने मनमाने ढंग से अपनी आशाओं, अभिलाषाओं व आवश्यकताओं की अधिकतम पूर्ति करने में जुट जाता है और ऐसा करते हुए ने तो उसे समाज की परवाह होती है, न लोक-लाज या लोक-निन्दा की और न ही सामाजिक आदर्शों अथवा मूल्यों की। उसके लिए तो अपना स्वार्थ सबसे बढ़कर होता है और उन स्वार्थों की सन्तुष्टि में उसका अपना व्यक्तिगत मूल्य ही उसके लिए सर्वोपरि होता है। वह किसी भी प्रकार के नियन्त्रण व आदर्श को स्वीकार नहीं करता और अपनी आशाओं व आवश्यकताओं को इतना बढ़ा लेता है कि वे व्यक्तिगत दायरे से निकलकर समाज की अपनी आशाओं व आवश्यकताओं को छिन्न-भिन्न करके समाज में विसंगति की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं। जब व्यक्ति सामूहिक स्वार्थो, नियमों तथा शक्तियों को तुच्छ समझने लगता है तो व्यक्ति और व्यक्ति के बीच, व्यक्ति और समाज के बीच तथा समूह और समूह के बीच का जो पवित्र आधार है, वह समाप्त हो जाता है; रह जाती है केवल नवीनताओं के लिए, अनजाने सुखों के लिए कभी न बुझने वाली एक प्यास।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  4. प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
  5. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
  6. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
  7. प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  11. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
  12. प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
  14. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  15. प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
  16. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
  17. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
  19. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
  20. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
  21. प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
  22. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
  29. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
  30. प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
  31. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  34. प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
  35. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
  36. प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
  37. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  38. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
  39. प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
  40. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
  41. प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
  42. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
  43. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
  44. प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
  45. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
  46. प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
  47. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
  48. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
  49. प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
  50. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
  52. प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
  54. प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
  55. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  58. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  60. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
  61. प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
  62. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  64. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  65. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
  66. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  67. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  68. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  69. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
  70. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
  72. प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  73. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
  75. प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
  76. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
  77. प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
  78. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  79. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  81. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  82. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  83. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  84. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  85. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  86. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  87. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  88. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  92. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  93. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  95. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  96. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  98. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  99. प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
  100. प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
  101. प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
  102. प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
  103. प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  104. प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
  105. प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
  106. प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
  108. प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
  109. प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  111. प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
  113. प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
  114. प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
  115. प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
  116. प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
  117. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
  119. प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
  120. प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
  121. प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
  123. प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
  124. प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
  126. प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  127. प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
  128. प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
  129. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
  130. प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
  131. प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
  133. प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
  134. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  136. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  137. प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
  138. प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  140. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  141. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  142. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  143. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  144. प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
  145. प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  146. प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
  147. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
  148. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
  149. प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
  150. प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
  151. प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
  152. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
  153. प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  154. प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
  155. प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

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